रविवार, मार्च 28, 2010

किसे धोखा दे रहे हैं हुसैन?

मकबूल फिदा हुसैन को कतर बड़ा रास आ रहा है। वो वहां के गुण गाते नहीं अघा रहे। वो कहते हैं
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मकबूल फिदा हुसैन : मुगालते में हैं या दूसरों को धोखा दे रहे हैं?
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‘कतर में मैं पूरी आज़ादी का लुत्फ़ उठा रहा हूं। अब कतर ही मेरा घर है। यहां मेरी अभिव्यक्ति की आज़ादी पर कोई पाबंदी नहीं है। यहां मैं बहुत खुश हूं।’ जनाब हुसैन साहब, या तो आप मुगालते में हैं, या दूसरों को धोखा देने की कोशिश कर रहे हैं। अगर मेरी बात पर यकीन नहीं है तो ज़रा उठाइए अपनी कूची और बना दीजिए अल्लाह की तस्वीर। फिर देखिए, क्या होता है। जिस मुल्क की तारीफ करते आपकी जुबान नहीं थक रही है, वहां कब्र भी नसीब नहीं होगी। टुकड़े कर के समुंदर में डाल दिए जाएंगे आप। भारत में रह कर तो आपने दुर्गा, लक्ष्मी और भारत माता की अश्लील तस्वीरें खूब बनाईं। आपने ये तस्वीरें बनाई ही नहीं, इन्हें जस्टिफाई भी किया। दलील ये दी, कि नग्नता में ही कला शुद्ध रूप में उभर कर आती है। हुसैन साहब, हम भी आपके हमवतन थे (अब तो ख़ैर आप अमीर को प्यारे हो चुके हैं।), इसी नाते एक सलाह देते हैं कि कतर में बैठकर कला के शुद्ध रूप की तलाश न कीजिएगा। वहां बैठकर कहीं आपने पैगम्बर साहब की बेटी फातिमा की नंगी तस्वीर बना दी, तो ग़ज़ब हो जाएगा। जो लोग आज आपके हाथ चूम रहे हैं, वही आपके
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कला या कलंक : हुसैन ने सरस्वती की अर्द्धनग्न तस्वीर बनाई
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हाथ काट लेंगे।
हालांकि हम ये भी जानते हैं कि हुसैन साहब कि आपके साथ इस तरह का कोई वाकया पेश नहीं आने वाला। क्योंकि आपने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर तमाम प्रयोग हिंदू देवी-देवताओं की तस्वीरों के साथ ही किए हैं। किसी और मजहब के बारे में आप सोच भी नहीं सकते। इस्लाम के बारे में तो कतई नहीं। ये सिर्फ हम ही नहीं कह रहे, मशहूर तरक्कीपसंद लेखिका तस्लीमा नसरीन भी आपके बारे में यही सोचती हैं। तस्लीमा ने जनसत्ता में 28 फरवरी को एक लेख लिखा, उसका एक अंश देखिए - ‘मैने मकबूल फिदा हुसैन के चित्रों को हर जगह से खोजकर देखने की कोशिश की कि हिन्दू धर्म के अलावा
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तस्लीमा नसरीन ने हुसैन की बखिया उधेड़ी
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किसी और धर्म, खासकर अपने धर्म इस्लाम को लेकर उन्होंने कोई व्यंग्य किया है या नहीं। लेकिन देखा कि बिल्कुल नहीं किया है। बल्कि वे कैनवास पर अरबी में शब्दशः अल्लाह लिखते हैं। मैंने यह भी स्पष्ट रूप से देखा कि उनमें इस्लाम के प्रति अगाध श्रद्धा और विश्वास है। इस्लाम के अलावा किसी दूसरे धर्म में वे विश्वास नहीं करते। हिंदुत्व के प्रति अविश्वास के चलते ही उन्होंने लक्ष्मी और सरस्वती को नंगा चित्रित किया है। क्या वे मोहम्मद को नंगा चित्रित कर सकते है। मुझे यकीन है, नहीं कर सकते।’
हुसैन साहब, मलयालम दैनिक ‘माध्यमम’ को दिए गए इंटरव्यू में आपने कहा, ‘भारत मेरी मातृभूभि है’। आप भारत को मां भी बोलते हैं और अपनी इस मां की नंगी तस्वीर भी बनाते हैं। आप अपनी मां के कैसे सपूत हैं? आप कहते हैं कि आपको तो भारत से बहुत
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वाह रे सपूत : हुसैन ने भारत को मां भी कहा, अश्लील तस्वीर भी बनाई
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प्यार है, लेकिन भारत को ही अब आपकी ज़रूरत नहीं है। अब मियां आप 94 साल के हो चुके हैं। पांव आपके कब्र में लटक रहे हैं। ये वो उम्र होती है, जब लोग अल्लाह का नाम लेते हैं, नाती-पोतों को सच बोलने की नसीहत देते हैं, लेकिन आप हैं कि सरेआम झूठ बोल रहे हैं। हुसैन साहब, याद रखिए, आपको भारत से निकाला नहीं गया। आप हिंदुस्तान को ठोकर मार कर चले गए। यहां रह कर आपने देवियों की नंगी तस्वीरें बनाईं। आप इसके जरिये दौलत में बदलने वाली शोहरत कमाना चाहते थे। मक़सद पूरा हो गया, तो वतन को अंगूठा दिखाकर कतर निकल लिए। आपकी तस्वीरों के खरीदार भी तो मोटी जेब वाले शेख ही हैं। सो तिजारत के लिए उससे बेहतर जगह क्या होगी। तस्वीरें खरीदारों के मुआफिक, पैसा आपके मुआफिक।
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भावनाओं से खिलवाड़ : हुसैन ने देवी दुर्गा की अश्लील तस्वीर बनाई
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भारत में आपके विरोधियों ने क्या किया? आपके खिलाफ कानून का सहारा ही तो लिया। आपके खिलाफ अदालत में मुकदमा ही तो किया। हुसैन साहब, अगर आपमें दम था तो आप अदालत में पेश होकर आरोपों का जवाब देते। अगर आपको लगता था कि आप सही हैं, तो अदालत में तर्क रखते। लेकिन आपमें नैतिक बल नहीं था। इसीलिए बुजदिलों की तरह भाग निकले। हुसैन साहब, आपने अपनी सफाई में कहा कि कला के जरिए किसी की भावना को ठेस पहुंचाने की आपकी नीयत कभी नहीं थी। आपने कला के जरिये सिर्फ अपनी रचनात्मकता जाहिर की है। तो जनाब, कलाकार को ही क्यों, हम तो कहते हैं कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सबको होनी चाहिए। लेकिन
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पार्वती की इस तस्वीर को कैसे जायज़ ठहराएंगे हुसैन साहब?
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एक बात बताएं, क्या आपको अल्पसंख्यक समुदाय का हिस्सा होने के चलते ही अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के हक के ग़लत इस्तेमाल की इजाज़त दे दी जानी चाहिए? अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सिर्फ हिंदू देवियों की अश्लील तस्वीरों से ही साबित होती है?जनाब अश्लील तस्वीरों के चलते जिस वक्त आपका विरोध हो रहा था, उस वक्त बुद्धिजीवियों का एक बड़ा तबका आपके साथ था। इनमें हिंदू, मुसलमान, सिख, इसाई सब शामिल थे। आपकी तमाम कारगुज़ारियों के बाद भी ये आपके समर्थन में सड़कों पर उतरे। याद रखिये कि ये सिर्फ हिंदुस्तान में ही संभव है। यहां अब भी बुद्धिजीवियों का एक तबका आपकी कारगुज़ारियों पर परदा डालने को तैयार बैठा है। ये कहता है कि भूख, बेकारी पर सोचना आपके बारे में सोचने से ज्यादा जरूरी है। ये अजंता, कोणार्क और खजुराहो का जिक्र करके आपको सही ठहराने की कोशिश करता है। लेकिन इन्हें ये नहीं मालूम कि अजंता, कोणार्क और खजुराहो में सीता, दुर्गा, सरस्वती या भारत माता के नहीं, अप्सराओं और राजकुमारियों के चित्र और मूर्तियां हैं। भूख-बेकारी बेशक बड़े मसले हैं, लेकिन जब दिल पर चोट लगती है तो उस टीस के आगे तमाम मसले बौने नज़र आते हैं।
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अभिव्यक्ति की ये कैसी आज़ादी : गणेश के सिर पर विराजित लक्ष्मी की अश्लील तस्वीर
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हुसैन साहब, इस देश में बहुसंख्यकों को सरेआम ज़लील कीजिए। उनकी भावनाओं से खुलकर खेलिए। इसके खिलाफ अगर किसी ने जुबान खोली तो आप उसे गुंडा भी कह लीजिए। कोई आपको कुछ नहीं कहेगा। इसका अनुभव तो आपको हो ही चुका है, लेकिन अगर आपने अल्पसंख्यकों की भावनाओं से खिलवाड़ की होती, तो आपका बचना मुश्किल होता। उदाहरण के तौर पर दो नमूने पेश हैं। कुछ साल पहले डेनमार्क के एक अखबार ने मुहम्मद साहब का कार्टून छापा था। दिल्ली की एक पत्रिका ने उसे साभार छापा तो पत्रिका के संपादक को जेल भेज दिया गया। दूसरा वाकया, मेघालय में बच्चों की किताब में जीज़स क्राइस्ट की तस्वीर छपी। इसमें ईसा मसीह के एक हाथ में सिगरेट और दूसरे हाथ में बीयर का डब्बा दिखाया गया। इस किताब के प्रकाशक और चित्रकार को आनन-फानन में गिरफ्तार कर लिया गया। हुसैन साहब, हम आपसे पूछते हैं कि क्या इन दोनों मामलों में की गई कार्रवाई ग़लत थी? अगर आप इन्हें सही ठहराते हैं तो फिर आप पर कार्रवाई क्यों नहीं होनी चाहिए। अगर आप इन्हें गलत ठहराते हैं तो ज़रा पैगम्बर की तस्वीर बना दीजिए।

10 टिप्‍पणियां:

  1. साहब आपको भी तनखैया घोषित कर देंगे सूडो धर्मनिरपेक्षिये..

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  2. हिंदुत्व सिर्फ धर्म नहीं, जीवन जीने की कला भी है। इस पर हमलों का सिलसिला सदियों पुराना है। ये हमला कभी मंदिरों को तोड़ कर किया गया तो कभी इसके आराध्यों का मखौल उड़ा कर, लेकिन सहनशीलता हिंदुत्व की परंपरा रही है। इसने सब सहा, लेकिन इसकी पवित्रता कायम रही। जिस तरह गंगा ने हर तरह की गंदगी को साफ करते हुए अब तक अपनी पवित्रता बरकरार रखी है, उसी तरह हिंदुत्व ने भी अपनी शुचिता कायम रखी है। संदेह नहीं, कि आगे भी ऐसा ही होगा।

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  3. सर, हुसैन जैसे बहुरूपियों का विरोध हर कीमत पर होना चाहिए। आपका बहुत बहुत धन्यवाद।

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  4. आपके शब्द गरम हैं। इनमें काफी धार है, लेकिन हुसैन को गरियाने में आप भी कई बार मर्यादा तोड़ गए हैं। हुसैन ने जो किया, आपने उसका विरोध किया। ये तो ठीक था। लेकिन उन्हें अल्ला की तस्वीर बनाने की चुनौती देकर आपने भी भावनाओं को भड़काने का ही काम किया है। आपका लेख पढ़कर लगा पांचजन्य के पन्ने पलट रहा हूं।

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  5. भाई अरुणेश जी, न तो मैने मर्यादा तोड़ी है, न भावनाएं भड़काने का काम किया है। इसके बावजूद अगर आपको ऐसा लगता है तो मुझे इसका अफसोस है। मैंने जो कुछ भी लिखा है, उस पर कायम हूं। ये सही है कि भारत का आम आदमी गरीब है। वो हुसैन की कला की कीमत नहीं चुका सकता था। ऐसे में तस्वीरों की तिजारत के लिए उन्हें जो सही लगा, उन्होंने किया। मैं नहीं समझता कि इससे किसी को ऐतराज होता। लेकिन हुसैन ने जिस मिट्टी में जड़ें जमाकर कामयाबी की फसल काटी, उसे ही जलील करते रहे। इससे अगर आप दुखी नहीं होते, तो हैरत की बात है। भारत छोड़ कर कतर में बसने के लिए हुसैन ने जो भी गलतबयानी की, उसके विरोध को अगर आप भावनाएं भड़काना कहते हैं, तो आप इसके लिए स्वतंत्र हैं।

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  6. sir, aapko toh patrakar ki jagah neta hona chahiye. bjp me jayenge toh chunav ka ticket bhi mil jayega.lagta hai varun gandhi ko bhashan dena aapne hi sikhaya hai.

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  7. हसरत भाई, सबसे पहले मैं एक बात साफ कर दूं। अगर यहां हुसैन की जगह दुर्गा दत्त शास्त्री होते, तो उनके खिलाफ भी मेरी टिप्पणी इतनी ही तल्ख होती। मैंने जो कुछ भी लिखा है, वो इस देश का संवेदनशील नागरिक होने की हैसियत से लिखा है। मेरी बातों को अन्यथा न लें।

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  8. मुझे लगता है अल्लाह की तस्वीर बनाने की सलाह को चुनौती की तरह नहीं लिया जाना चाहिए है, ना ही अपमान करने या भावनाएं भड़काने कोशिश के रूप में, बल्कि ये हुसैन को इस बात का एहसास कराने की कवायद है वो समझें कि हिंदुस्तान ने उनको अभिव्यक्ति की जितनी स्वतंत्रता दी है, वो यकीनन उन्हें कतर जैसे मुल्क में कभी नहीं मिल पाएगी, इसके बावजूद उन्हें अपने मुल्क से शिकायत है यही अफसोस की बात है। वैसे शिकायत तो अपनों से भी होती है, परिवारवालों, रिश्तेदारों से भी होती है, कभी जायज कभी नाजायज, लेकिन इसका मतलब ये तो नहीं कि लोग घर छोड़ देते हैं, रिश्ते-नातों को तोड़ लेते हैं। हमें यकीन है कि देर सबेर हुसैन साहब को भी इसका एहसास जरूर होगा। गलती उन्होंने की है, उनके मुल्क हिंदुस्तान ने नहीं और उन्हें बड़े कलाकार की तरह अपनी गलती स्वीकार करने से गुरेज नहीं होना चाहिए।

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  9. सांप्रदायिक कौन है ... मुझे अफ़सोस है की जो भी हिन्दुओं से सम्बंधित जायज बात उठाता है उसको लेकर गलत धारणा बना ली जाती है. मकबूल फिदा हुसैन शुरू से एक वर्ग की भावनावों से खेलते रहे हैं . इस देश में उन्हें पता था कि ऐसी हरकतों से वह लोकप्रिय होंगे और उनकी पेंटिंग्स कि कीमत बढेगी . वह शायद आपका ब्लॉग नहीं पढेंगे पर काश ऐसा हो पाता. लम्बे अरसे बाद रणविजयी तेवर देखने को मिले अच्छा लगा .

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