गुरुवार, मार्च 18, 2010

माला की माया!

भई माला हो तो ऐसी। जितनी चर्चा नेता की, उससे ज्यादा माला की। वाकई ये माला की ही माया है। ...तो क्या हुआ कि मायावती ने हज़ार रुपये के नोटों की माला पहन ली। माना कि ये माला ज़रा भारी भरकम थी, इसे तैयार करने में नोट भी थोड़ा ज्यादा लगे होंगे। लेकिन इस बात को लेकर बवाल मचाना भला कहां की इंसानियत है।
बहनजी के विरोधी बताएं कि क्या देश में नेताओं के तुलादान का चलन नहीं है?
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माया की माया : लखनऊ में 15 मार्च को बीएसपी की रैली में मायावती को एक हज़ार रुपये के नोटों की माला पहनाई गई।
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अगर नेताओं को तराजू पर बैठाकर सिक्कों से तोला जा सकता है तो नोटों की माला क्यों नहीं पहनाई जा सकती? वैसे मुझे लगता है कि 15 मार्च को लखनऊ में हुई महारैली में बीएसपी कार्यकर्ताओं ने मायावती को भी सिक्कों से तोलने की ही योजना बनाई होगी। लेकिन बाद में उन्हें रुपये के अवमूल्यन का खयाल आया होगा। अब ये भी भला बताने की जरूरत है कि रुपये का भाव इस कदर गिर चुका है कि सिक्कों को भिखारी भी नहीं पूछते। ज़रा सोचिए, जब ये बात उनके ध्यान में आई होगी तो कांग्रेस की अर्थनीति पर उनकी खोपड़ी कितनी भन्नाई होगी। कार्यकर्ताओं ने अपने गुस्से पर काबू पाने और तुलादान की जगह कोई और तरीका तलाशने के लिए न जाने पान के कितने बीड़ों और गुटखे के कितने पाउचों का सहारा लिया होगा। तब कहीं जाकर उन्हें बहनजी को उनके वजन (शारीरिक नहीं, राजनीतिक) के मुताबिक नोटों की माला पहनाने का खयाल आया होगा। माया की माला पर शोर मचाने वालों को सोचना चाहिए कि इस मामले में दोषी तो वित्त मंत्री और उनकी आर्थिक नीति है। न रुपये का भाव गिरता, न माया नोटों की माला पहनतीं।
माया ने नोटों की माला पहन कर फूलों की हिफाजत का भी संदेश दिया है। ये सीधी सी बात न जाने क्यों बीएसपी के विरोधियों की खोपड़ी में नहीं घुसती। माया को जो माला पहनाई गई, अगर वो फूलों से बनाई जाती तो न जाने कितने पौधे जुल्म का शिकार होते। पौधों पर होने वाले जुल्म का असर पर्यावरण पर पड़ता तो ग्लोबल वार्मिंग यानी धरती का तापमान बढ़ता और न जाने कितने ग्लेशियर पिघल जाते। ऐसे में सागर किनारे के कई शहरों के जल समाधि लेने का खतरा पैदा हो जाता। तो भाइयो, मायावती ने नोटों की माला पहन कर देश को ही नहीं, पूरी दुनिया को अपने अहसान से लाद लिया है।
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दुनिया मेरी जेब में : माया ने 17 मार्च को भी नोटों की माला पहनी।
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चलते-चलते एक बात और। माया ने ये भी साबित कर दिया है कि उन्हें अपने समर्थकों की पसंद-नापसंद का पूरा खयाल है। 15 मार्च को लखनऊ में पार्टी की महारैली में उन्होंने एक हज़ार रुपये के नोटों की माला पहनी थी। ये माला रंगीन तो थी, लेकिन रंग-बिरंगी नहीं थी। लगता है बहनजी के समर्थकों में से किसी ने जरूर इस बात की तरफ उनका ध्यान खींचा होगा। तभी तो 17 मार्च को हुए पार्टी के कार्यक्रम में उन्होंने जो माला पहनी, उसमें हर रंग के नोट लगे थे और माला एकदम चकाचक रंगीन दिख रही थी। ये रंग उनके कार्यकर्ताओं को इस क़दर पसंद आए कि पार्टी ने ऐलान कर दिया है कि वो आगे भी माया को माला पहनाने का सिलसिला जारी रखेगी।

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