मंगलवार, मार्च 16, 2010

सियासत की जमीन, विरासत का बिरवा


देश में बहुत पहले सियासत की जमीन पर विरासत का बिरवा रोपा गया था। उस वक्त नन्हा सा दिखने वाले इस पौधे की जड़ों ने जमीन के भीतर ही भीतर तमाम दलों को छूत की बीमारी लगा दी। और अब देश की राजनीतिक व्यवस्था पर वारिसों का ही वर्चस्व नज़र आता है।
सियासत की जमीन पर विरासत की फसल उगाने का सिलसिला शुरू किया कांग्रेस ने। पंडित जवाहर लाल नेहरू का कद इतना बड़ा है कि उनकी निष्पक्षता और ईमानदारी पर सवालिया निशान लगाना कम से कम मेरे जैसे कम समझ-बूझ वाले इंसान के लिए जायज़ नहीं होगा, लेकिन कहने वाले कहते हैं कि उन्होंने इंदिरा को अपने राजनीतिक वारिस के के रूप में प्रोजेक्ट करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। यही वजह है कि नेहरू और लालबहादुर के बाद कांग्रेस के तमाम नेताओं ने जब इंदिरा में आस्था जताई तो किसी को हैरत नहीं हुई।
इंदिरा अपनी विरासत बेटे संजय को सौंपने वाली थीं, कि संजय की मौत हो गई और बाद में इंदिरा की भी हत्या कर दी गई। इसके बाद कांग्रेस के दिग्गजों ने राजीव गांधी को नेता मान लिया। राजीव की हत्या के बाद उनकी पत्नी सोनिया गांधी कई साल तक सक्रिय राजनीति से दूर रहीं, लेकिन नेहरू गांधी परिवार के बरगदी साये के बिना कांग्रेस के नेता ही खुद को असुरक्षित महसूस करने लगे। उन्होंने सोनिया के पांव पकड़ कर उन्हें पार्टी की कमान सौंप दी। और अब गांधी परिवार के चश्मोचिराग राहुल को पार्टी की कमान सौंपने की तैयारी की जा रही पार्टी के बुजुर्ग नेताओं की जुबान से राहुल के नाम से पहले निकलने वाला ‘माननीय’ शब्द बता देता है कि आगे क्या होने वाला है।
कांग्रेस के ऊपर वंशवाद का आरोप लगाने वाली भारतीय जनता पार्टी को न जाने क्यों राजमाता विजया राजे सिंधिया की बेटियों वसुंधरा राजे और यशोधरा राजे के नाम याद नहीं आते।
पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने पीलीभीत से मेनका गांधी के बेटे वरुण को और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में प्रमोद महाजन की बेटी पूनम महाजन को टिकट दिया। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में ही बीजेपी ने गोपीनाथ मुंडे की बेटी-दामाद को भी टिकट दिया। ये हकीकत है उस दल की जो खुद को ‘पार्टी विद डिफरेंस’ कहती है।
राजनीतिक वंशवाद की लकीर पर चलने वालों में देश की लगभग तमाम पार्टियां शामिल हैं। एक समय में नेहरू और और इंदिरा के करीबी रह चुके बीजू पटनायक के बेटे नवीन पटनायक उड़ीसा में बहुत पहले पिता की गद्दी संभाल ही चुके हैं।
जम्मू-कश्मीर में शेख अब्दुल्ला के बाद सत्ता की कमान उनके बेटे फारुक अब्दुल्ला को मिली और अब फारुक के बेटे उमर अब्दुल्ला सूबे के मुख्यमंत्री हैं।
यूपी की बात करें तो समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव ने हालांकि अभी अध्यक्ष का पद छोड़ने का मन नहीं बनाया है, लेकिन ये साफ हो चुका है कि वो अपनी राजनीतिक विरासत अपने बेटे अखिलेश यादव को ही सौंपेंगे।
अकाली दल नेता और पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल भी अपनी विरासत बेटे सुखवीर बादल को ही सौंपने की तैयारी में हैं। सहयोगी पार्टी बीजेपी के ऐतराज को दरकिनार कर उन्होंने जिस तरह सुखवीर को डिप्टी सीएम बनवाया, वो उनके इरादे जाहिर कर देता है। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री करूणानिधि के बेटे स्टालिन भी पिता की गद्दी संभालने को तैयार हैं।
महाराष्ट्र में बाल ठाकरे ने अपनी विरासत बेटे उद्धव को सौंपी तो भतीजे राज ठाकरे ने बगावत कर दी और चचा ठाकरे के आगे बड़ी चुनौती खड़ी कर दी। लेकिन चचा का फैसला नहीं बदला। शिव सेना ने इसकी कीमत महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में महाराष्ट्र नविनर्माण सेना के हाथों चोट खाकर चुकाई है।
वंशवाद की अमर बेल का सहारा लेने वालों की फेहरिस्त इतनी लंबी है कि तमाम नामों का जिक्र करने के लिए महाग्रंथ लिखना होगा। क्योंकि जब आप दिमाग के घोड़े दौड़ाएंगे तो ज्योतिरादित्य सिंधिया, सचिन पायलट, जितिन प्रसाद, मिलिंद देवड़ा, सुप्रिया सुले जैसे नाम भी तो याद आएंगे।

9 टिप्‍पणियां:

  1. बिहार से मेरा भी सम्बन्ध है ..लेकिन अपने ब्लॉग के माध्यम से टिप्पणी करते समय "मैं" की जगह "हम" का प्रयोग करता हूँ, क्योंकि ये हम दो मित्रों का साझा प्रयास है. मेरे मित्र आपके इस ब्लॉग से सहमत होते, लेकिन मैं असहमत नहीं तो सहमत भी नहीं हूँ..पृथ्वीराज कपूर ने अपने पेशे में चार पीढियां झोंक दीं.. राकेश रोशन ने अपने पिता की पार्टी (संगीत) को छोड़कर अपनी नयी पार्टी (एक्टिंग) बना ली और अपने बेटे को लगा दिया.. आई.ए.एस. खानदान में वही पेशा, पंजाब के फौजियों के यहाँ फौजी, डाक्टर के घर डाक्टर.. फिर नेता के घर खानदानी पेशा अगर कोई अपनाता है तो क्यों सवाल उठाते हैं आप..आख़िरकार तो जनता ही उनको चुनकर भेजती है.., तो या तो प्रजातंत्र के बुनियादी ढांचे में बदलाव लायें या फिर चुहिया को चूहा ही मिलेगा - कोशिश आप पहाड़, बादल, हवा या सूरज की कर लें..
    जुबां की तल्खी के लिए माफ़ी चाहूँगा..हमारे ब्लॉग पर भी आपकी बेबाक टिप्पणी की प्रतीक्षा रहेगी..
    http://samvedanakeswar.blogspot.com

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  2. हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
    कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें

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  3. yogyta insan ko aage badhata hay..baad baki sab ulti tirchhi chaal hay jo chalna insani fitrat hay..nahi to aisa bhi udhahran hay jisme ek neta ka beta nachaniya ban jata hay..jaise RAHUL MAHAJAN,RITESH DESMUKH etc aate hay..sab INDRA GANDHI,RAJIV GANDHI,RAHUL GANDHI..jaisa apna pakad apne maa pita se jyada banane ki salahiyat kahan rakh pate hayn.

    aapka lekh achchha laga.

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  4. संवेदना के स्वर की प्रतिक्रिया पर---
    आपका प्रतिवाद काफी दमदार है, तर्कों में ताकत है, लेकिन फिर भी एक बात कहना चाहूंगा। अगर कोई धन कमाने के लिए या आजीविका के लिए पुश्तैनी धंधे में उतरता है, तो इसमें मैं कोई बुराई नहीं समझता। लेकिन अगर यही काम 'जनता के लिए', 'मेरा कोई स्वार्थ नहीं', 'मैं तो जो कर रहा हूं, देश के लिए कर रहा हूं' जैसे नारे लगाने वाले करें तो इसका विरोध किया जाना चाहिए। प्रतिक्रिया देने के लिए एक बार फिर धन्यवाद।

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  5. सुकून मेरे अल्फाजों में नहींएक फांस है,
    अंदाज़-ऐ-बयां में नश्तर सा एहसास है,
    चुप ही रह जाते हम बेदर्द,
    शुक्र के वो बर्दाश्त-ऐ-हुनर आपके पास है...
    दो कोड़ी का तुम्हारा ये विशवास है,
    शब्द में ही छुपी एक आस है,
    टूट जाता एक ज़रा हवा के झोंके से,
    रह जाती फकत दिलों में फांस है...
    फिर न कहना के हम तुम्हारे ख़ास हैं,
    हमे मालुम तुम्हारे सब अंदाज़ हैं,
    बिखर जाती है सब नाज़-ओ-अदाएं,
    खोले जब भी हमने कुछ राज़ हैं.........

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  6. इस नए चिट्ठे के साथ हिंदी ब्‍लॉग जगत में आपका स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!

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